जिसका समय व्यर्थ व्यय होता है, उसने समयका मूल्य समझा ही नहीं । मनुष्यको कभी निकम्मा नहीं रहना चाहिये; अपितु सदा-सर्वदा उत्तम-से-उत्तम कार्य करते रहना चाहिये । मनसे भगवान्का चिन्तन, वाणीसे भगवान्के नामका जप, सबको नारायण समझकर शरीरसे जगज्जनार्दनकी नि:स्वार्थ सेवा यही उत्तम-से-उत्तम कर्म है । – परम श्रद्धेय जयदयालजी गोयन्दका
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